तेजस्वी डेढ़ साल डिप्टी सीएम रहे, लेकिन कभी गांव नहीं आए, सीएम बनने के बाद लालू ने बदली थी सूरत
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिहार के लिए क्या किया और क्या नहीं, गोपालगंज के फुलवरिया के लोग उसकी चर्चा करने की जगह लालू के जमाने में गांव के लिए किए काम को यादकर आज भी जी रहे हैं। कोई खिलाफ नहीं बोलता, लेकिन लोग यह सच्चाई और उसका दर्द नहीं छिपा पाते कि “नया बिहार, तेजस्वी सरकार” का नारा देने वाले लालू पुत्र इस गांव को पूरी तरह भूल चुके।
40 साल की एक महिला मिलीं, नाम पूछा तो भागने लगीं। रोककर बात की तो भी नाम नहीं बताया, बस भोजपुरी में इतना कहा- “जे कइलन उ लालू जी, बेटवन सब झाकहुं न आइल। जे आज लउकता, उ 20 साल पहिले ओइसने रहे। इ लोग जे कमइलन-बनइलन, लेकिन फुलवरिया झांकहुं ना अइलन।” इन बातों का दर्द यहां हर तरफ दिखता है। अस्पताल है, मगर पिछली सदी की व्यवस्था वाला।
तेजस्वी-तेज प्रताप नहीं आते हैं, मगर लालू से शिकायत नहीं
भास्कर की टीम जब रेफरल अस्पताल में पहुंची तो वहां एक कमरे में दो लोग बातें करते हुए मिले। दोनों सरकारी कर्मचारी थे। इनमें से एक फुलवरिया के ही रहने वाले थे। पहचान उजागर नहीं किए जाने की शर्त पर उन्होंने बात की। बताया कि लालू प्रसाद 2017 में ही अपने गांव आए थे। इसके बाद उन्हें चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा। इस विधानसभा चुनाव में वो नहीं हैं। जो बात उनमें है, वो उनके बच्चों में नहीं है।
तेज प्रताप और तेजस्वी यादव तो अपने ददिहाल में आते भी नहीं हैं। यहां के लोगों से संपर्क भी नहीं रखते हैं। गांव के लोगों को तो दोनों भाई पहचानते भी नहीं हैं। तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने, लेकिन फुलवरिया के लिए कुछ नहीं किया। अपने लालू जी वाली बात उनके दोनों बेटों में नहीं है।
लालू के मुख्यमंत्री बनने के पहले तक फुलवरिया में कुछ भी नहीं था। न सड़क थी, न बिजली की कोई व्यवस्था। लोगों के इलाज के लिए न कोई अस्पताल था। बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई प्राइमरी स्कूल तक नहीं था। लेकिन, लालू मुख्यमंत्री बने तो सूरत बदल गई।
घर से गांव तक लालू ही पहचान, नई पीढ़ी का वास्ता नहीं
यहां लालू प्रसाद के दो पुराने घर हैं। पहले में एक भाई के बेटे और उनका परिवार रहता है। दूसरे घर में दूसरे भाई का बेटा-पोता और परिवार के सदस्य रहते हैं। इस घर के आंगन में ही लालू प्रसाद की मां मरछिया देवी की एक प्रतिमा भी बनी हुई है, जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री रहते राबड़ी देवी ने किया था। लोग बताते हैं कि लालू परिवार में लालू-राबड़ी के अलावा किसी का इस गांव से वास्ता नहीं है। होता तो 2015 में जब तेजस्वी उप मुख्यमंत्री और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने तो नई सुविधाएं जुड़ जातीं। नया कुछ नहीं होने का दर्द झलकता है, लेकिन बोलने की बारी आती है, तो लोग लालू प्रसाद के किए काम को बताने लगते हैं।
अस्पताल, पुलिस, ब्लॉक, ट्रेन…सब लालू की ही देन
लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गांव में सबसे पहले रेफरल अस्पताल बनवाया। यह लालू प्रसाद की मां मरछिया देवी के नाम पर है। इसके बाद फुलवरिया में पुलिस आउट पोस्ट खुलवाई, जो बाद में थाना बन गई। लालू प्रसाद ने ही फुलवरिया को ब्लॉक बनाया। सब रजिस्ट्रार ऑफिस खुलवा दिया। बिजली के लिए सब स्टेशन बनवाया। इसके बाद से पूरे फुलवरिया और आसपास के दूसरे गांव के लोगों को बिजली मिलने लगी।
जब केंद्र में यूपीए की सरकार में लालू प्रसाद रेल मंत्री बने तो फुलवरिया होते हुए उत्तर प्रदेश के भटनी तक एक नई रेल लाइन ही बिछवा दी गई। इस रूट पर हाजीपुर से पंचदेवड़ी तक ट्रेन चलती है।
पहले बथूआ जाना पड़ता था बच्चों को पढ़ने के लिए
फुलवरिया में एक घर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रहे प्राइवेट टीचर इब्राहिम मिले। इसी गांव के रहने वाले हैं। वो बताते हैं कि गांव के अंदर पहले बच्चों के प्राइमरी एजुकेशन की कोई व्यवस्था नहीं थी। अपने कार्यकाल के दौरान लालू ने ही दो सरकारी मिडिल स्कूल खुलवाए। उनके माध्यम से ही अब बगल के मारीपुर गांव में हाई स्कूल खुला है। गांव के अंदर न अच्छी सड़क थी और न ही नाला, लेकिन उनके सीएम बनते ही गांव बदल गया।
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