पूजा आयोजकों ने इस साल चार गुना कम किया बजट; 80% कॉरपोरेट जगत पर निर्भर रहने वाले दुर्गा पूजा पंडालों को इस साल सिर्फ 25% ही फंड मिला, 40 लाख वाला पंडाल 10 लाख में हुआ तैयार
पश्चिम बंगाल की दुर्गापूजा भी इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गई है। हालात यह है कि जिन पंडालों पर करोड़ों रुपए खर्च होते थे वह इस साल कम होकर 8 से 10 लाख रुपए पर आ गए है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां बिजनेस घरानों से मिलनेवाले चंदों में भारी कमी आई है। इससे पंडालों ने सीमित खर्च किया है।
महाषष्ठी के साथ पांच दिनों का यह दुर्गा पूजा उत्सव बंगाल की संस्कृति में शामिल है। देश-दुनिया से लोग यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन इस साल का नजारा बिल्कुल अलग है। बंगाल के दुर्गा पूजा के इतिहास में यह पहली बार होगा जब पूजा पंडाल में किसी प्रकार की कोई खास तामझाम नहीं किया गया है और ना श्रद्धालु की लंबी कतारें हैं। दुर्गा पूजा पर कोरोना महामारी का साफ असर दिख रहा है।
कोलकाता में बड़े पूजा आयोजकों को कोरोना संकट के चलते ना सर्फ पूजा पंडाल का कद छोटा करना पड़ा बल्कि बजट में भारी कटौती करनी पड़ी। अब कलकत्ता हाई कोर्ट ने यह आदेश दे दिया है कि पंडाल में सीमित विजिटर्स की ही एंट्री होगी। इस फैसले ने आयोजकों के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। अब कई स्पॉन्सर्स पूजा पंडाल को स्पॉन्सर करने से कतरा रहे हैं।
नार्थ कोलकाता के मोहम्मद अली पार्क, साउथ कोलकाता के भवानीपुर 75 पल्ली और चेतला अग्रणी जैसे बड़े पूजा पंडाल के आयोजकों का कहना है कि तृतीया के दिन जब सब कुछ तैयार हो गया तब कलकत्ता हाई कोर्ट ने पंडाल वाले एरिया को कंटेंटमेंट जोन में डाल दिया। पंडाल में विजिटर्स की संख्या को सीमित कर दिया। अगर यही फैसला पहले आ गया होता तो हम अपने बजट को और कम कर देते।
उनका मानना है कि कोर्ट फैसले के बाद कई ब्रान्ड कंपनियों ने पंडाल में पैसे लगाने से मना कर दिया। 75 पल्ली पूजा पंडाल के आयोजक व सचिव सबीर दास बताते हैं कि कोर्ट के फैसले के बाद करीब चार ऐसी ब्रान्ड कंपनियां हैं, जिन्होंने पंडाल को स्पॉन्सर करने से मना कर दिया। इन कंपनियों का मानना है जब विजिटर्स आएंगे ही नहीं तो प्रमोशन किसके लिए करें। सबीर दास कहते हैं, पूजा पंडाल में 22 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक के लिए स्पॉन्सर्स के साथ हुई डील हाथ से निकल गई। इस डील से करीब 5 लाख रुपए आने वाले थे।
ऐसी कहानी केवल सबीर दास के साथ नहीं है। हर आयोजकों की कहानी इसी तरह की है। 40-50 लाख में होने वाली पूजा का बजट 8 से 10 लाख पर आ गया। नार्थ कोलकाता में सबसे मशहूर पूजा पंडाल मोहम्मद अली पार्क (एमडी अली पार्क) में होता है। यहां सबसे बड़ा मेला लगता है। हर साल इस पंडाल का बजट 40 से 60 लाख तक हुआ करता था। लेकिन इस साल इसका बजट केवल 12 लाख रह गया है।
1969 से लगातार आयोजन कर रही एमडीअली पार्क पूजा समिति के सचिव अशोक ओझा कहते हैं, पहली बार ऐसा हुआ है जब हम फंड की कमी के चलते बजट में कटौती कर दिए हैं। ऊपर से मास्क, ग्लव्स और पीपीटी किट के चलते खर्च अतिरिक्त बढ गया है। हालांकि, इस साल ममता बनर्जी की सरकार ने सभी रजिस्टर्ड पूजा पंडाल को सफाई और हाइजीन को ध्यान रखने के लिए अतिरिक्त खर्च को देखते हुए 50-50 हजार रुपए दिए हैं।
बता दें कि बंगाल सरकार के पास रजिस्टर्ड पूजा पंडालों की संख्या करीब 37,000 है। अशोक बताते हैं कि एक पूजा पंडाल जब लगातार 10 सालों तक पूजा का आयोजन करता है तब उसे सरकार के खाते में वह रजिस्टर्ड किया जाता है। एमडीअली पार्क में इस साल दुर्गा मां की प्रतिमा को बेहद सिंपल रखा गया है, हालांकि थीम काफी दमदार है। यहां मां दुर्गा के रूप में कोरोना वाॅरियर्स को दिखाया है जो कि महामारी रूपी राक्षस का संहार करती हैं।
कॉरपोरेट जगत से नहीं मिला अधिक सहयोग
अशोक बताते हैं कि बंगाल का दुर्गा पूजा करीब 80 फीसदी स्पॉन्सरशिप पर निर्भर रहता है। बाकी रकम इलाके से चंदा इक्कठा करके और प्राइज मनी से जुटाई जाती है। इस साल कॉरपोरेट जगत से कुछ खास मदद नहीं मिल पाई है। पिछले सात माह से कारोबार पूरी तरह ठप होने के चलते स्पॉन्सर्स पैसे लगाने से हिचक रहे हैं। उनका कहना है कि कोरोना के चलते पहले ही वे नुकसान में हैं, ऊपर से महामारी में ज्यादातर लोग घूमने फिरने से बच रहे हैं। ऐसे में कंपनियों को ब्रांडिंग से कुछ खास फायदा नजर नहीं आ रहा है।
28 साल की परंपरा को बरकरार रखना मजबूरी
साउथ कोलकाता का चेतला अग्रणी नाम से मशहूर पूजा पंडाल इस साल बेहद सिंपल थीम पर तैयार की गई है। हर साल यहां पूजा पंडाल में एंट्री के लिए करीब 20 गेट बनाए जाते थे और उन सभी गेटों पर ब्रान्ड कंपनियों का भारी तामझाम रहता था लेकिन अबकी बार केवल 7 गेट ही बने हैं। ब्रांड कंपनियों से करीब 20 से 25 फीसदी ही फंडिंग हुई है। ऐसे में जहां हर साल 30 से 40 लाख तक के बजट में पंडाल तैयार किया जाता था वो इस साल मात्र 8 लाख के आसपास में सिमट कर रह गई है।
चेतला अग्रणी पूजा के अध्यक्ष यासिर खान बताते हैं कि हम पिछले 28 साल से यहां पूजा करते आए हैं। इस साल उस जगह को सूना नहीं रख सकते थे, इसलिए हमने कम बजट के चलते साधारण पूजा का आयोजन किया है। यासिर कहते हैं इस साल हमें मात्र 15-20 स्पाॅन्सर्स ही मिलें हैं। इस वजह से हम अपने जेब से पैसे लगाकर और आस पास से चंदा लेकर पूजा कर रहे हैं। हालांकि, यह एरिया कोलकाता नगर निगम के मेयर और मंत्री फिरहाद हकीम के अंदर आती है, इसलिए उनकी तरफ से मदद मिल गई है। इस कारण भी पूजा करना संभव हो पाया है।
25 किलो सोने से तैयार हुई श्रीभूमी की मां दुर्गा
इस साल कोलकाता के श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब ने केदारनाथ की थीम पर तैयार पंडाल में मां दुर्गा की मूर्ति को 25 किलो सोने के गहनों से सजाया है। इस पूजा के मुख्य सदस्य राज्य के मंत्री सुजीत बोस हैं। वे कहते हैं कि इस साल पूजा की रौनक फीकी जरूर है, मगर हमने मूर्ति के आकार और उसकी भव्यता से कोई समझौता नहीं किया गया है। हर साल की तरह इस साल भी हमने मां दुर्गा को सोने के गहनों से सजाया है। श्रीभूमी स्पोर्टिंग क्लब हमेशा से भव्यता के लिए मशहूर रही है। हालांकि, बजट को लेकर पूछे गए सवाल पर सुजीत बोस ने स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बताया लेकिन उन्होंने यह माना है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल पूजा पंडाल के बजट में 20 फीसदी तक की कटौती हुई है।
बता दें कि यह वही पूजा पंडाल है जिसे साल-2018 में दुनिया का सबसे महंगा पंडाल होने का सर्टिफिकेट दिया गया था। बाहुबली की थीम पर तैयार पूजा पंडाल का बजट करीब 10 करोड़ रुपए था। पंडाल की ऊंचाई 110 फीट रखी गई थी। इतना ही नहीं पिछले साल 2019 में नार्थ कोलकाता के संतोष मित्रा स्क्वेयर में मां दुर्गा को 50 किलो सोने से तैयार किया गया था। बजट 20-25 करोड़ रुपए बताई गई थी।
बजट कम होने के चलते कपडे, धागे और फिश नेट का किया इस्तेमाल
साउथ कोलकाता का मशहूर पूजा पंडाल भवानीपुर 75 पल्ली में इस साल कपडे, धागे और मछली पकड़ने वाली जाल से पंडाल को तैयार किया गया है। सबीर दास बताते हैं कि इस साल का हमारा पूजा का कुल बजट 10 लाख के आसपास है। वहीं, पिछले साल करीबन 50 लाख के आसपास के बजट में पूजा का आयोजन किया गया था। वे बताते हैं कि इस साल ब्रान्ड कंपनियों की तरफ से खास रिस्पॉन्स नहीं मिला है। होर्डिग्स, बैनर्स पर ज्यादा खर्च नहीं किया गया है। कम बजट होने के कारण आयोजन पंडाल और मूर्ति को बेहद साधारण रख रहे हैं लेकिन थीम जरूर हर साल की तरह इस भी दमदार है।
छोटे कारीगरों की तो सालभर की कमाई होती है दुर्गा पूजा से
कॉन्फेडरेशन ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशंस के अध्यक्ष सुशील पोद्दार बताते हैं कि हर साल बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान लगभग 3000 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। इनमें पूजा पंडाल की तैयारी, लेबर, मूर्तिकार, फास्ट फूड का स्टाॅल, कहार व ढाक से लेकर पूजा शॉपिंग शामिल हैं। लेकिन इस साल कोरोना व लॉकडाउन से पैदा आर्थिक संकट ने सबकुछ बर्बाद कर दिया है। इस साल दुर्गा पूजा का पूरा मार्केट करीब 30-35 फीसदी तक डाउन है।
बता दें कि टूर एंड ट्रैवल, फूड और गारमेंट कारोबार के ठप रहने के चलते दुर्गा पूजा का बाजार काफी प्रभावित हुई है। सुशील के मुताबिक, इस साल करीब हजारों की संख्या में ऐसे लेबर से लेकर मूर्तिकार और पूजा के दौरान छोटे छोटे फूड का स्टाॅल लगाने वालों की कमाई पर सीधा असर पड़ा है। वे बताते हैं कि इनकी कमाई का जरिया ही दुर्गा पूजा है। इस समय इनकी कमाई इतनी हो जाती है कि ये सालभर छोटे मोटे अन्य काम करके भी घर-परिवार मैनेज कर लेते थे।
साउथ कोलकाता के सुरुचि संघ पूजा पंडाल के पास पिछले दस सालों से फूड ट्रक का कारोबार करने वाले आमिर अली कहते हैं कि हर साल पूजा के समय फास्ट फूड की इतनी मांग होती थी कि हम उसे पूरी नहीं कर पाते थे। छह दिनों तक चलने वाली पूजा के दौरान दो लाख तक की कमाई हो जाती थी, लेकिन इस साल पूजा शुरु हुए दो दिन हो गए। अभी तक 10 हजार से भी कम की कमाई हुई है।
पहली बार सिंदूर खेला रस्म के बगैर ही होगी मां की विदाई
बंगाल के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जहां दुर्गापूजा की परम्परा को ही बदलना पड़ा। दुर्गापूजा की शुरुआत मां की प्रतिमा में चक्षु दान के साथ किया जाता है और पूजा सम्पन्न होती है सिंदूर खेला के साथ। ऐसी मान्यता है कि 9 दिन मायके में रहने के बाद मां अपनी ससुराल जाती हैं, इसके पूर्व महिलाएं पान के पत्ते में सिंदूर डालकर मां की मांग भरती है। उसके बाद वही सिंदूर वे एक-दूसरे को लगाती है। दुर्गापूजा के पूरे 9 दिन में यह रस्म सबसे खूबसूरत होती है जिसके साथ भावनात्मक रूप से सभी जुड़े होते हैं। बता दें कि कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण कोर्ट ने सिंदूर खेला पर रोक लगा दी है।
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