आध्यात्मिक यात्रा में अनुभव मायने रखते हैं, इनकी गहराई में उतरने की जरूरत है
ऋषि योगी, महात्माओं ने सालों तपस्या की। बाहरी दुनिया के शोर से खुद को दूर रखा, बुरे विचारों को हावी नहीं होने दिया। और निर्लिप्तता की ओर जाने में अपनी चैतन्य अवस्था में विचारशून्यता की ओर गए। पर आप क्या कर रहे हैं?
अपने रोज़मर्रा के कामों के बीच पूजने के कमरे में झटपट 3-4 मिनट बिताकर या अर्जेंट पूजा करके निर्वाण पाने की कामना करते हैं। ईश्वर के समक्ष खुद को समर्पित नहीं करते, बस भगवान से मांगते हैं- फलां चीज़ मिल जाए, परीक्षा में पास हो जाएं। यह आपका भगवान के साथ रिश्ता है। हमारी आध्यात्मिकता का यही स्तर है।
उपनिषद पढ़ते हुए मन में कई सवाल खड़े होंगे
आप आध्यात्मिकता की किताबें खरीद सकते हैं, उपनिषद् पढ़ते हुए आपके मन में कई सारे सवाल खड़े होंगे। इसलिए नहीं कि इसे समझने के लिए आप में बौद्धिक क्षमता या इंटेलिजेंस नहीं है, बल्कि इसलिए कि उसे समझने के लिए अभी बौद्धिक रूप से तैयार नहीं हुए हैं। और तब बारी आती है सच्चे गुरु की, जिसे साफगोई से कह देना चाहिए कि आप इसके लिए अभी तैयार नहीं हैं।
वहां पहुंचने के लिए अभी लंबी यात्रा करना बाकी है। आपने सात स्वर सीखे नहीं हैं, लेकिन आप म्यूजिक कंसर्ट करने की अनुमति मांग रहे हैं। पर दुर्भाग्य से कोई गुरु सच नहीं कहता। यहां तक कि अर्जुन भी रणभूमि में बिना तैयारी के पहुंच गए थे, अपनी सारी क्षमताएं-योग्यताएं उन्होंने सिर्फ अभ्यास स्वरूप परखीं थीं। अर्जुन ने कभी भी युद्ध का सामना नहीं किया था। बिना युद्ध की तैयारी के जब अर्जुन रणभूमि में आए, तो उनके दिमाग में सिर्फ शोर था। अंदर उथल-पुथल थी। स्पष्टता नहीं थी।
सवाल का जवाब तभी लेना चाहिए जब आप तैयार हों
गुरु से जब आप सवाल पूछते हैं तो कायदे से उन्हें कहना चाहिए कि आप इसके लिए तैयार नहीं है। पर जब वे आपके सवालों के जवाब देते हैं। तब आध्यात्मिकता पर यह ज्ञान शांति के बजाय विचारों का ज्वार ला देता है। और सवालों की गुत्थी उलझती जाती है। जैसे कि कर्म का विज्ञान क्या है?
अभी कर्मों का विज्ञान समझना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि आप जीवन का हर क्षण नि:स्वार्थ भाव से जिएं। आप अपने कर्मों को संचय करते जाते हैं और कर्ज इकट्ठा होता जाता है। ऐसे में अभी जरूरी है कि दिन में कम से कम एक बार पूर्ण नि:स्वार्थ भाव को महसूस करें।
यह पूरा दिन सिर्फ मैं, मेरा या मेरे बारे में नहीं है, पर जिंदगी के कई ऐसे क्षण भी होने चाहिए, जिसमें आप अपने लिए, दूसरों के लिए जिएं, दूसरों को आगे करके जिएं। कर्मों के विज्ञान की अवधारणा समझने से बेहतर है सेल्फलेस लिविंग को अपनाकर जीवन में साम्य लाएं। लेकिन सवाल-जवाब में उलझकर हमारे मन में 15 नए सवाल पैदा हो जाते हैं। और शोर हो जाता है।
जब ठहराव आना चाहिए तब हमारे अंदर भूचाल आ जाता है
आध्यात्मिक यात्रा में जब ठहराव आना चाहिए, तो हमारे अंदर और भूचाल आ जाता है। हम सोचते हैं कि अपनी बुद्धिमत्ता से हम इस प्रक्रिया को भी तेज़ी से आगे बढ़ा सकते हैं या फॉरवर्ड कर सकते हैं। उदाहरण के लिए 8-10 साल के बच्चों को विश्लेषण करने, विचारशील होने के लिए कहना बेमानी है।
उन्हें कुछ समझाने के लिए गतिविधियों का सहारा लेना पड़ता है। प्रायोगिक अनुभव के बाद जब हम उन्हें उसका ज्ञान देंगे, तब वे इस चीज़ को समझेंगे। लेकिन अगर उन्हें बैठाकर सोचने-कल्पना करने के लिए कहा जाए, तो बिना अनुभव किए वे कभी इस बात को नहीं समझेंगे।
आध्यात्मिक आनंद की बजाय आध्यात्मिक अनुभव की ओर जाना चाहिए
हमें आध्यात्मिक अनुभवों की ओर जाना चाहिए, लेकिन हम आध्यात्मिक आनंद की ओर जाना चाहते हैं। हमें इस बात पर जोर देना चाहिए कि अपने अनुभवों की गहराई में कैसे उतरा जाए, लेकिन हम कई पायदान ऊपर चढ़कर आध्यात्मिकता की अवधारणा पर पहुंच जाते हैं और इससे दिमाग में शोर शुरू हो जाता है।
भौतिक दुनिया में सवाल करना बनता है, चीजों को चुनौतियां देने की जरूरत पड़ती है। आप पूछ सकते हैं कि यह रणनीति काम क्यों नहीं कर रही है या मैं चौथे क्रम पर क्यों हूं, सामने वाला पहने नंबर पर क्यों है। लेकिन आध्यात्मिक दुनिया में आपको नहीं पता कि आप अपने स्तर का सवाल पूछ रहे हैं या अपने स्तर से अगल।
आपके प्रति प्रेम प्रकट करने का मतलब हमेशा हां कहना नहीं होता। कभी-कभी ना कहना भी जरूरी होता है। गुरु को कभी-कभी कहना जरूरी है कि अभी आप इसके लिए तैयार नहीं हैं।
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